तुलसी माला
भारतीय संस्कृति विभिन्न मान्यताओं, परंपराओं, विश्वासों, सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाजों से परिपूर्ण है। भारतीय संस्कृति जैसी कोई अन्य मिसाल सम्पूर्ण विश्व में मिलना मुश्किल है। इसी संस्कृति के बहुत से मांगलिक प्रतीकों में एक अभिन्न अंग है तुलसी माला। धार्मिक क्रियाओं में तुलसी के पौधे, तुलसी के पत्तों एवं तुलसी माला का व्यापक प्रयोग होता है। तुलसी की महिमा बताते हुए भगवान शिव नारदजी से कहते हैं –
पत्रं पुष्पं फलं मूलं शाखा त्वक स्कन्धसंज्ञितम।
तुलसीसंभवं सर्वं पावनं मृत्तिकादिकम।।
अर्थात तुलसी का पत्ता, फूल, फल, मूल, शाखा, छाल, तना और मिट्टी आदि सभी पावन हैं।
तुलसी की माला धारण करने के पीछे भी वैज्ञानिक मान्यता है। वैज्ञानिकों का कथन है कि होंठ और जीभ का प्रयोग कर निरन्तर जप करने से साधक की कंठ-धमनियों को अधिक कार्य करना पड़ता है, जिसके फलस्वरूप कंठमाला, गलगंड आदि रोग होने की आशंका होती है। इसके बचाव के लिए तुलसी की माला पहनी जाती है। तुलसी अपने गुणों से कंठ को दुरुस्त रखती है। इसकी माला पहनने वाले के चारों ओर चुम्बकीय शक्ति विद्यमान होने के कारण आकर्षण और वशीकरण शक्ति आ जाती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। तुलसी की माला धारण करने के संबंध में शालिग्राम पुराण में कहा गया है – भोजन करते समय तुलसी की माला का गले में होने से अनेक यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है। जो कोई तुलसी की माला धारण करके स्नान करता है उसे गंगा स्नान जैसे सारी नदियों के स्नान का फल प्राप्त होता है।