शंख

पूजा शंख

पूजा-पाठ में शंख बजाने का चलन युगों-युगों से है. देश के कई भागों में लोग शंख को पूजाघर में रखते हैं और इसे नियम‍ित रूप से बजाते हैं. ऐसे में यह उत्सुकता एकदम स्वाभाविक है कि शंख केवल पूजा-अर्चना में ही उपयोगी है या इसका सीधे तौर पर कुछ लाभ भी है. दरअसल, सनातन धर्म की कई ऐसी बातें हैं, जो न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि कई दूसरे तरह से भी फायदेमंद हैं. शंख रखने, बजाने व इसके जल का उचित इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ होते हैं. कई फायदे तो सीधे तौर पर सेहत से जुड़े हैं. आगे चर्चा की गई है कि पूजा में शंख बजाने और इसके इस्तेमाल से क्या-क्या फायदे होते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है. धार्मिक ग्रंथों में शंख को लक्ष्मी का भाई बताया गया है, क्योंकि लक्ष्मी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है. शंख की गिनती समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में होती है. शंख को इसलिए भी शुभ माना गया है, क्योंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में इसे धारण करते हैं. पूजा-पाठ में शंख बजाने से वातावरण पवित्र होता है. जहां तक इसकी आवाज जाती है, इसे सुनकर लोगों के मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं. अच्छे विचारों का फल भी स्वाभाविक रूप से बेहतर ही होता है. शंख के जल से श‍िव, लक्ष्मी आदि का अभि‍षेक करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है.

दक्षिणावर्ती शंख

इस संसार में अनेकों वस्तुएं ऎसी होती है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। ऎसी चमत्कारी वस्तुओं में दक्षिणावर्ती शंख भी एक है। शंख की महिमा और महत्तव प्रत्येक अनुष्ठान में विशेष रूप से हैं। साधारणत: मंदिर में रखे जाने वाले शंख उल्टे हाथ के तरफ खुलते हैं और बाज़ार में आसानी से ये कहीं भी मिल जाते हैं लेकिन दक्षिणावर्ती शंख एक दुर्लभ वस्तु है। शंख बहुत प्रकार के होतें हैं , लेकिन प्रचलन में मुख्य रूप से दो प्रकार के शंख है प्रथम वामवर्ती शंख…… दूसरा दक्षिणावर्ती शंख … वामवर्ती शंख का पेट बांयी ओर को खुला होता है | तंत्र शास्त्र में वामवर्ती शंख की अपेक्षा दक्षिणावर्ती शंख को विशेष महत्त्व दिया गया है | यह शंख वामवर्ती शंख के विपरीत इनका पेट दायीं ओर खुला होता है | इस प्रकार दायीं ओर की भंवर वाला शंख ” दक्षिणावर्ती ” कहलाता है | प्रायः सभी दक्षिणावर्ती शंख मुख बंद किये होते हैं | यह शंख बजाये नहीं जाते हैं , केवल पूजा रूप में ही काम में लिए जाते हैं | शास्त्रों में दक्षिणावर्ती शंख के कई लाभ बताये गए है :-

पूजन की विधि तंत्र शास्त्र के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख को विधि-विधान पूर्वक जल में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है और भाग्य का दरवाजा खुल जाता है। साथ ही धन संबंधी समस्याएं भी समाप्त हो जाती हैं। दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। इसका शुद्धिकरण इस प्रकार करना चाहिए- लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करें- “ऊँ श्री लक्ष्मी सहोदरया नम:”

गोमुखी शंख

गोमुखी शंख की उत्पत्ति सतयुग में समुद्र मंथन के समय हुआ। जब 14 प्रकार के अनमोल रत्नों का प्रादुर्भाव हुआ तब लक्ष्मी के पश्चात् शंखकल्प का जन्म हुआ। उसी क्रम में गोमुखी कामधेनु शंख का जन्म माना गया है। पौराणिक ग्रंथों एवं शंखकल्प संहिता के अनुसार कामधेनु शंख संसार में मनोकामनापूर्ति के लिए ही प्रकट हुआ है। अन्य रत्न और भी निकले जो इस प्रकार हैं- कल्पवृक्ष, कामधेनु, अमृत, चंद्रमा, धनवंतरी, कौस्तुभमणि आदि सभी शंख वर्तमान में भी समुद्र देव से ही प्राप्त हो रहे हैं। इस शंख की उत्प आज भी श्रीलंका और आस्ट्रेलिया के समुद्रों में अधिक होती है। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी शंख के नाम से जाना जाता है। पौराणिक शास्त्रों में इसका नाम कामधेनु गोमुखी शंख है। इस शंख को कल्पना पूरी करने वाला कहा गया है। कलियुग में मानव की मनोकामनापूर्ति का एक मात्र साधन है। यह शंख वैसे बहुत दुर्लभ है। इसका आकार कामधेनु के मुख जैसा है। लाल-पीला रंग का प्राकृतिक जबड़ा मुंह के रूप की शोभा बढ़़ा रहा है। ऊपर दो-तीन सिंग बने हुए हैं। - कामधेनु गोमुखी शंख के प्रयोग: किसी भी शुभ मुहूर्त में लाल वस्त्र धारण कर लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठकर सामने गोमुखी शंख को इस प्रकार से रखें कि आपके सामने शंख का मुंह रहे। रुद्राक्ष की माला से 11 दिन में 51 हजार जप करें। मंत्र जप के समय शंख के मुंह पर फूंक मारें। यह साधना 11 दिन में सिद्ध हो जाती है। यह शंख आपकी हर मनोकामना पूर्ण करता है साथ ही वाणी सिद्धि भी हो जाती है। मंत्र इस प्रकार हैः ऊँ नमः गोमुखी कामधेनु शंखाय मम् सर्व कार्य सिद्धि कुरु-कुरु नमः। लक्ष्मी प्राप्ति में कामधेनु शंख के विभिन्न प्रयोग: दुर्लभ कामधेनु शंख ऋषि-महर्षि साक्षी हैं - ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि मैं आज से लक्ष्मी को सिद्ध हैं

विष्णु शंख

भगवान विष्णु के हाथों में चक्र, गदा और कमल के अलावा आपने शंख भी देखा होगा। कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु का एक प्रमुख आयुध शस्त्र है। मां लक्ष्मी की पूजा में भी शंख का इस्तेमाल किया जाता है। कहा जाता है कि इसकी पूजा करने से घर में वातावरण शुद्ध होता है। आज हम आपको बता रहे हैं शंख के ये 6 उपाय। जिन्हें भगवान विष्णु का पूजन करते समय इस्तेमाल करने से विशेष लाभ होता। आगे

शंख में दूध भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें भगवान विष्णु की पूजा करते हैं तो पूजा के दिन शंख में चावल भरकर रखें और पूजा के बाद इन्हें अपने धन वाले स्थान पर रख लें। घर में जहां भी जल का स्रोत हो वहां पर शंख रखना चाहिए। कहा जाता है कि इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। केसर मिले जल को शंख में भरकर रखें और इससे मां भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का अभिषेक करना चाहिए। कहा जाता है कि इससे घर में बरकत आती है। घर पर दक्षिणार्वती शंख रकना चाहिए और इसकी रोज सुबह-सवेरे उठकर पूजा करनी चाहिए। महीने की एकादशी के दिन शंख की विशेष पूजा करनी चाहिए। इस दिन शंख पर तुलसी दल अर्पित करने चाहिए।

मोती शंख

तंत्र शास्त्र के अनुसार मोती शंख एक विशेष प्रकार का शंख होता है, ये आम शंख से थोड़ा अलग दिखाई देता है और थोड़ा चमकीला भी होता है। इस शंख को विधि- विधान से पूजन कर यदि तिजोरी में रखा जाए तो घर, कार्यस्थल, व्यापार स्थल और भंडार में पैसा टिकने लगता है। आमदनी बढऩे लगती है।

यदि मोती शंख को कारखाने में स्था‍पित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है। यदि मोती शंख को मंत्र सिद्ध व प्राण-प्रतिष्ठा पूजा कर स्थापित किया जाए तो उसमें जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आर्थिक उन्नति होती है। मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज 'ॐ श्री महालक्ष्मै नम:' 11 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक प्रयोग करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है। यदि व्यापार में घाटा हो रहा है, दुकान से आय नहीं हो रही हो तो एक मोती शंख दुकान के गल्ले में रखा जाए तो इससे व्यापार में वृद्धि होती है।

हत्था जोड़ी

एक विशेष प्रकार का और दुर्लभ पौधा पाया जाता है, इसका नाम है हत्था जोड़ी। इसकी जड़ को चमत्कारी उपायों में प्रयोग किया जाता है। इस जड़ को हत्था जोड़ी कहते हैं। हत्था जोड़ी इंसान की भुजाओं के आकार की होती है। इसमें दो पंजे दिखाई देते हैं और उंगलियां भी साफ-साफ दिखाई देती हैं। पंजों की आकृति ठीक इसी प्रकार होती है, जैसे मुट्ठी बंधी हुई हो। ज्योतिषीय उपायों में इस जड़ का विशेष महत्व है। यह पौधा विशेष रूप से मध्यप्रदेश के वन क्षेत्रों में पाया जाता है। आमतौर वनवासी लोग इस जड़ को निकालकर बेचते हैं। यह जड़ बहुत चमत्कारी होती है और किसी कंगाल को भी मालामाल बना सकती है। इस जड़ के असर से मुकदमा, शत्रु संघर्ष, दरिद्रता से जुड़ी परेशानियों को दूर किया जा सकता है। इस जड़ से वशीकरण भी किया जाता है और भूत-प्रेत आदि बाधाओं से भी निजात मिल सकती है।

हत्था जोड़ी को तांत्रिक विधि से सिद्ध किया जाता है। इसके बाद यह चमत्कारी असर दिखाना शुरू कर देती है। सिद्ध की हुई हत्था जोड़ी, जिस व्यक्ति के पास होती है वह बहुत जल्दी धनवान हो सकता है। यदि कड़ी मेहनत के बाद भी आपको आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो किसी भी शनिवार अथवा मंगलवार हत्था जोड़ी घर ले आएं। इस जड़ को लाल रंग के कपड़े में बांध लें। इसके बाद घर में किसी सुरक्षित स्थान पर या तिजोरी में रख दें। इससे आपकी आय में वृद्घि होगी एवं धन का व्यय कम होगा। तिजोरी में सिन्दूर लगी हुई हत्था जोड़ी रखने से विशेष आर्थिक लाभ होता है।

सियार सिंगी

सियार सिंगी को सिद्ध करने की विधि सियार सिंगी को सिद्ध करने की विधि के लिए कुछ तांत्रिक सियार का शिकार करते हैं, लेकिन ऐसा करना वर्जित है. अगर आप शिकार किये हुए सियार का सिंग अपने घर में रखते हैं तो इससे आपको बड़ी हानि ओर मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए सियार सिंगी को सिद्ध करने की करने के लिए किसी स्वाभाविक रूप से मरे सियार का ही सिंग प्रयोग में लाना चाहिए. इस तरह से जो सिंग प्राप्त किया जाता है वह बहुत अच्छे ओर तत्काल लाभ देने वाला होता है. सियार सिंगी को सिद्ध करने की विधि करने में असली ओर नकली सियार सिंगी कि पहचान करना बहुत ज़रूरी है. असली सियार सिंगी के आसपास बाल रहते हैं. इसे सिंदूर में रखना पड़ता है. सिंदूर में रखने पर ये सुरक्षित रहता है ओर इसके कारण इसके बाल बड़ने लगते हैं. सियार सिंगी बहुत ही दुर्लभ तांत्रिक प्रयोग की वस्तु है. ये हजारों सियार में से किसी एक के पास ही होती है. तांत्रिकों के पास सियार सिंगी आसानी से मिल जाती है. लेकिन एक तांत्रिक को सियार सिंगी को प्राप्त करने के लिए जंगल-जंगल भटकना पड़ता है| सियार सिंगी को सिद्ध सियार सिंगी अपने आप में बहुत ही चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न करने वाली होती है. इसके मात्र घर में रखने से सौभाग्य और उन्नति के नए द्वारा खुलने लगते हैं. जिन लोगों के घर में सियार सिंगी होता है उनका व्यापार में दिन ब दिन तरक्की होती रहती है. ऐसे लोगों के घर से दरिद्रता सदा के लिए विदा हो जाती है, उनके यश ओर वैभव में कभी कोई कमी नही आती. सियार सिंगी को घर में रखने पर शत्रु हथियार डाल देते हैं. आपके मार्गे में आने बाधाएं ध्वस्त होने लगती हैं. सियार सिंगी घर में रखने से यह हर तरह के संकट से आपकी बचाती है. चारों तरफ आपकी विजय पताका लहराने लगती है और आपका समाज में सम्मान होने लगता है. इसे घर में रखने से आपके संकल्प ओर वशीकरण की शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि होती है| सियार सिंगी को सिद्ध करने की विधि के अंतर्गत दिवाली के पूर्व का समय उत्तम होता है. सियार सिंगी को होली पर भी सिद्ध किया जा सकता है. कई तांत्रिक सियार सिंगी को सिद्ध करने की विधि को गुप्त रखते हैं. यहाँ जो विधि आपको बताई जा रही है ये आसन है ओर आप इसके प्रयोग से जल्द ही लाभ प्राप्त कर सकते हैं

एकाक्षी नारियल

एकाक्षी नारियल के लाभ एकाक्षी नारियल को घर में रखने से आपके घर में धन-संपदा का वास होगा। दरिद्रता दूर होगी और आपके जीवन में खुशियां आएंगीं। नवग्रहों की शांति के लिए भी एकाक्षी नारियल लाभकारी सिद्ध होगा। यदि आप अपनी कुंडली के किसी भी ग्रह के कारण परेशानियों से जूझ रहे हैं तो आपके लिए एकाक्षी नारियल एकमात्र चमत्‍कारिक उपाय है। एकाक्षी नारियल के प्रभाव से घर में सुख और धन का आगमन होता है। कैसे करें प्रयोग एकाक्षी नारियल को आप अपने पूजन स्‍थल या तिजोरी में रख सकते हैं। स्‍थापना के पश्‍चात् रोज एकाक्षी नारियल को धूप, दीप और नैवेद्य दें। स्‍थापना से पूर्व एकाक्षी नारियल पर गंगाजल छिड़कें। ध्‍यान रहे एकाक्षी नारियल को गुरुवार के दिन ही स्‍थापित करें। हमसे क्‍यों लें एकाक्षी नारियल को हमारे पंडितजी द्वारा अभिमंत्रित कर के आपके पास भेजा जाएगा जिससे आपको शीघ्र अति शीघ्र इसका पूर्ण लाभ मिल सके।

बिल्ली की जेर (नाल)

बिल्ली के प्रसव के समय बिल्ली के द्वारा एक प्रकार की थैली त्यागी जाती है। जिसे आंवल या जेर कहते हैं। प्रायः सभी पशुओं में प्रसव के समय आंवल निकलता है। परंतु बिल्ली की विशेषता यह है कि बिल्ली अपना आंवल तुरंत खा जाती है। पालतू बिल्ली का आंवल किसी कपड़े से ढक कर प्राप्त कर लिया जाये तो इसका तांत्रिक प्रभाव धन-धान्य में वृद्धि करता है। बिल्ली की जेर तांत्रिक सिद्धि या प्रभावी जादुई शक्ति प्राप्त करने में काफी महत्व है। बिल्ली की जेर पारंपरिक रूप से तांत्रिकों द्वारा अत्यधिक लाभकारी माना गया है। ग्रामीणों, व्यापारियों, राजनेताओं, निवेशकों, शेयर दलालों, जुआरी, व्यापार आदमी, उच्च रैंक के लोगों और नेताओं सब के लिए यह उपयोगी है। बिल्ली की जेर को बिल्ली की नाल भी कहा जाता है। यह चमत्कारी शक्ति है और जादुई परिणाम प्रदान करता है। महत्व और लाभ: बिल्ली की जेर अपने स्वामी को जबरदस्त लाभ प्रदान करता है। यह सोच क्षमताओं और मन की उपस्थिति को बेहतर बनाता है इंसान में आत्मविश्वास का स्तर बढ़ता है। यह भी ग्रह राहु, मंगल और शुक्र के हानिकारक प्रभाव को दूर करने में बहुत फायदेमंद है। इससे भारी मुनाफा और व्यापार में सफलता मिलती है और धन संचय और पैसे के मामले में मदद करता है। यह व्यापारियों और हाई प्रोफाइल लोगों को सभी दौर में समृद्धि और परिवार में वित्तीय शक्ति प्रदान करता है।

पारद शिवलिंग

पारद (पारा) को रसराज कहा जाता है। पारद से बने शिवलिंग की पूजा करने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार पारद शिवलिंग साक्षात भगवान शिव का ही रूप है इसलिए इसकी पूजा विधि-विधान से करने से कई गुना फल प्राप्त होता है तथा हर मनोकामना पूरी होती है। घर में पारद शिवलिंग सौभाग्य, शान्ति, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए अत्यधिक सौभाग्यशाली है। दुकान, ऑफिस व फैक्टरी में व्यापारी को बढाऩे के लिए पारद शिवलिंग का पूजन एक अचूक उपाय है। शिवलिंग के मात्र दर्शन ही सौभाग्यशाली होता है। इसके लिए किसी प्राणप्रतिष्ठा की आवश्कता नहीं हैं। पर इसके ज्यादा लाभ उठाने के लिए पूजन विधिक्त की जानी चाहिए।

इसे घर में स्थापित करने से भी कई लाभ हैं, जो इस प्रकार हैं पारद शिवलिंग सभी प्रकार के तन्त्र प्रयोगों को काट देता है. पारद शिवलिंग जहां स्थापित होता है उसके १०० फ़ीट के दायरे में उसका प्रभाव होता है. इस प्रभाव से परिवार में शांति और स्वास्थ्य प्राप्ति होती है. पारद शिवलिंग शुद्ध होना चाहिये, हस्त निर्मित होना चाहिये, स्वर्ण ग्रास से युक्त होना चाहिये, उसपर फ़णयुक्त नाग होना चाहिये. कम से कम सवा किलो का होना चाहिये. य़दि बहुत प्रचण्ड तान्त्रिक प्रयोग या अकाल मृत्यु या वाहन दुर्घटना योग हो तो ऐसा शुद्ध पारद शिवलिंग उसे अपने ऊपर ले लेता है. ऐसी स्थिति में यह अपने आप टूट जाता है, और साधक की रक्षा करता है. पारद शिवलिंग की स्थापना करके साधना करने पर स्वतः साधक की रक्षा होती रहती है.विशेष रूप से महाविद्या और काली साधकों को इसे अवश्य स्थापित करना चाहिये. पारद शिवलिंग को घर में रखने से सभी प्रकार के वास्तु दोष स्वत: ही दूर हो जाते हैं साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध होता है। पारद शिवलिंग की स्थापना करके साधना करने पर स्वतः साधक की रक्षा होती रहती है.विशेष रूप से महाविद्या और काली साधकों को इसे अवश्य स्थापित करना चाहिये.

श्वेतार्क गणपति

श्वेतार्क अर्थात सफ़ेद फूल वाला आक [मदार ]का पौधा एक ऐसा वनस्पति है जो कम देखने में आता है जबकि नीली आभा वाले फूलो वाका आक का पौधा सर्वत्र दीखता है ,श्वेतार्क की जडो का तंत्र जगत में बहुत महत्व है ,ऐसा मन जाता है की २५ वर्ष पुराने आक के पौधे की जडो में गणपति की आकृति स्वयमेव बन जाती है और जहा ऐसा पौधा होता है वहा सांप भी अक्सर होता है ,,श्व्तार्क गणपति एक बहुत प्रभावी मूर्ति होती है जिसकी आराधना साधना से सर्वमनोकामना सिद्धि,अर्थलाभ,कर्ज मुक्ति,सुख-शान्ति प्राप्ति ,आकर्षण प्रयोग,वैवाहिक बाधाओं,उपरी बाधाओं का शमन ,वशीकरण ,शत्रु पर विजय प्राप्त होती है ,यद्यपि यह तांत्रिक पूजा है ,,यदि श्वेतार्क की स्वयमेव मूर्ति मिल जाए तो अति उत्तम है अन्यथा रवि-पुष्य योग में पूर्ण विधि-विधान से श्वेतार्क को आमंत्रित कर रविवार को घर लाकर ,गणपति की मूर्ति बना विधिवत प्राण प्रतिष्ठा कर ,अथवा प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति किसी साधक से प्राप्त कर साधना/उपासना की जाए तो उपर्युक्त लाभ शीघ्र प्राप्त होते है ,यह एक तीब्र प्रभावी प्रयोग है .श्वेतार्क गणपति साधना भिन्न प्रकार से भिन्न उद्देश्यों के लिए की जा सकती है ,इसमें मंत्र भी भिन्न प्रयोग किये जाते है .. सर्वमनोकामना की पूर्ति हेतु श्वेतार्क गणपति का पूजन बुधवार के दिन प्राराम्भ करे ,पीले रंग के आसन पर पीली धोती पहनकर पूर्व दिशा की और मुह्कर बैठे ,एक हजार मंत्र प्रतिदिन के हिसाब से २१ दिन में २१ हजार मंत्र जप मंत्र सिद्ध चैतन्य मूंगे की माला से करे ,,पूजन में लाल चन्दन ,कनेर के पुष्प ,केशर,गुड ,अगरबत्ती ,शुद्ध घृत के दीपक का प्रयोग करे | घर में विवाह कार्य ,सुख-शान्ति के लिए श्वेतार्क गणपति प्रयोग बुधवार को लाल वस्त्र ,लाल आसन का प्रयोग करके प्रारम्भ करे ,इक्यावन दिन में इक्यावन हजार जप मंत्र का करे ,मुह पूर्व हो ,माला मूगे की हो,साधना समाप्ति पर कुवारी कन्या को भोजन कराकर वस्त्रादि भेट करे | आकर्षण प्रयोग हेतु रात्री के समय पश्चिम दिशा को,लाल वस्त्र- आसन के साथ हकीक माला से शनिवार के दिन से प्रारंभ कर पांच दिन में पांच हजार जप मंत्र का करे ,,पूजा में तेल का दीपक ,लाल फूल,गुड आदि का प्रयोग करे |उपरोक्त प्रयोग किसी के भी आकर्षण हेतु किया जा सकता है |

नवरत्न अंगूठी

नवरत्न अंगूठी ज्योतिषीय उपायों के तहत, एक रत्न अंगूठी पहन सकते हैं उनके राशि या जन्म कुंडली पर आधारित है। नवरतनवेदिक ज्योतिष में उपयोग किए गए नौ ग्रहों से संबंधित नौ रत्नों को संदर्भित करता है। यदि कुंडली में अधिक ग्रह कमजोर हों तो नवग्रह रत्न अंगूठी को दाएं हाथ की अनामिका में रविवार की सुबह धारण करें, नव रत्न शुभ माना जाता है और मानाजाता है कि जो कोई भी इसे पहनता है वह अच्छे स्वास्थ्य लाएगा। यह स्वास्थ्य, समृद्धि, खुशी और मन की शांति का प्रतीक है। इसके अलावा, यह नकारात्मक ऊर्जा और ग्रहों के प्रभाव को छोड़ देता है, जबकि रत्नों के सकारात्मक प्रभाव को मजबूत करता है।

ओमेओन कुंडली में गुरु और शनि को पीड़ित है, ताकि मूल एक उपाय है कि नियमित रूप से काली ह्मीडर पाउडर तिलक को गुरुवार को शुक्लपक्ष दोनों ग्रहों में शुभकामना देकर लागू किया जा सकता है।